किसान महामारी के दौर में भी अपने खेतो में काम कर देश के लिए अहम योगदान दे रहा हे जहां समूचा देश लॉकडाउन में अपने घ्ररो में रहने को मजबूर है
वही किसान रात दिन गन्ना सप्लाई कर चीनी मिलो को संचालित कर रहा है
ग्रामीण अंचल से दूध् सब्जी की आपूर्ति लगातार कर रहा है| Difference Between Industrialist And Businessman
गेहूॅ की कटाई मडाई का कार्य लगातार संचालित है किसान तमाम बंदिशो के बाबजूद शहर की मंडियो में अपनी उपज पहुचा रहे है और आये दिन सुरक्षा बलो के उत्पीडन का शिकार हो रहा ऐसी दशा में आवश्यक हो जाता है कि किसानो को अपनी उपज का लाभकारी मूल्य मिले लेकिन ऐसा हो नही रहा है
आटे के मूल्य की तुलता में गेहूॅ का मूल्य बहुत कम है जिससे किसानो के बजाय बिचौलियो को लाभ मिल रहा है।
इस पर राष्ट्रीय किसान मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित शेखर दीक्षित ने  कहां कि देश के टाटा रिलायंस सहित तमाम कल कारखानेा में ताला लगा है
किसान रात दिन खेतो में काम कर रहा है देश की करकार को किसानो को छोडकर लगता है सभी चिन्ता है
जिन्दगी को दांव पर लगाकर किसान खेतो में काम कर रहे है किसान सरकार के साथ खडा है फिर भी सरकार किसानो को उसकी उपज का सही मूल्य नहीं दे पा रही जबकि वर्तमान सरकार ने अपने घोषणा पत्र में कई बार यह कहा कि स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू कर किसानों को उसकी उपज का सही मूल्य दिया जाएगा |
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को उसकी मूल भावना के साथ लागू नहीं किया गया है,,न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP-Minimum Support Prices) का आधार सरकार ने ए2+पारिवारिक श्रम को जोड़कर बनाया है. वो इस पर 50 प्रतिशत का लाभ जोड़कर पैसा दे रही है,
जो किसानों से किए गए वादे को पूरा नहीं करता।(Difference Between Industrialist And Businessman)
असल में किसानों को सी2+50 प्रतिशत लाभ के फार्मूले से एमएसपी देने की जरूरत है,जिसमें खाद, पानी, बीज, दवा, मशीन की मरम्मत और उसके पारिवारिक श्रम आदि की भी लागत जुड़ती है।
जो गेहूं सरकार द्वारा लागू किए गए फार्मूले से 1925 रुपये क्विंटल पर बिक रहा है उसका दाम ईमानदारी से सी-2 लागू होने पर 2765 रुपये के हिसाब से मिलेगा,, अभी एमएसपी का आकलन जैसे हो रहा है वो आर्थिक दृष्टि से तर्कसंगत नहीं है,,यानी फसल का दाम सही तरीके से तय नहीं किया जा रहा।
महज 6 फीसदी किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिलता है,देश में सिर्फ 1.6 फीसदी बड़े किसान हैं,, बाकी लोग लघु एवं सीमांत में आते हैं,,, उनमें से ज्यादातर के पास सरप्लस अनाज नहीं होता इसलिए उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था का लाभ नहीं मिल रहा,,,, मुश्किल से गेहूं और धान के भी एक तिहाई भाग की ही खरीद एमएसपी पर हो पाती है।
 2017 के मुताबिक स्विट्जरलैंड सरकार अपने किसानों को सालाना प्रति हेक्टेयर 2993 यूरो यानी करीब 2.5 लाख रुपये खेती करने के लिए वजीफा के तौर पर देती थी,यानी एक लाख रुपये एकड़।(Difference Between Industrialist And Businessman)
इसके साथ ही किसान अपना उत्पाद कहीं भी किसी भी रेट पर बेचने के लिए आजाद होता था,इसी तरह पशुपालकों को 300 यूरो यानी करीब 25000 रुपये मिलते थे।
मैं भारत में भी इसी मॉडल पर किसानों को सालाना एक निश्चित रकम देने की मांग कर रहा हूं,,देश में 86 फीसदी लघु एवं सीमांत किसान हैं,, उन्हें 20 हजार रूपये एकड़, उससे बड़े वालों को 15 हजार रुपये एकड़ और 10 हेक्टेयर से अधिक खेती वालों को 10 हजार रुपये प्रति एकड़ सरकारी मदद दी जाये , इससे किसानों की स्थिति में सुधार आ सकता है।(Difference Between Industrialist And Businessman)
कैसे तय होती है एमएसपी
किसानों को उनकी उपज का ठीक मूल्य दिलाने के लिए सरकार एमएसपी की घोषणा करती है,कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) इसका आकलन करता है,,इसे तय करने के तीन फार्मूले हैं।
ए-2: कि‍सान की ओर से किया गया सभी तरह का भुगतान चाहे वो कैश में हो या कि‍सी वस्‍तु की शक्‍ल में, बीज, खाद, कीटनाशक, मजदूरों की मजदूरी, ईंधन, सिंचाई का खर्च जोड़ा जाता है।
ए2+एफएल: इसमें ए2 के अलावा परि‍वार के सदस्‍यों द्वारा खेती में की गई मेहतन का मेहनताना भी जोड़ा जाता है।
सी-2: लागत जानने का यह फार्मूला किसानों के लिए सबसे अच्छा माना जाता है,
इसमें उस जमीन की कीमत (इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर कॉस्‍ट) भी जोड़ी जाती है जिसमें फसल उगाई गई,,इसमें जमीन का कि‍राया व जमीन तथा खेतीबाड़ी के काम में लगी स्‍थाई पूंजी पर ब्‍याज को भी शामि‍ल कि‍या जाता है,,,इसमें कुल कृषि पूंजी पर लगने वाला ब्याज भी शामिल किया जाता है. यह लागत ए2+एफएल के ऊपर होती है।